रविवार, अगस्त 02, 2020

सन्देश (कविता): कोमल चंद


संदेश

बहुत दिनों से घर भीतर,
बच्चे रोते रहते हैं।
बहुत दिनों से गांव मोहल्ले,
पनघट सूने रहते हैं।

हे! बादल, उनकी पुकार सुनना,
मेरे देश का हर गरीब भूखा है।
तुम इस बरस खुशी से बरसना,
उनकी पुकार सुनना।
मेरी इच्छा पूरी करना।

अन्न- धन की हो खुशहाली
सबके चेहरे हों प्रभात की लाली
जो तप कर झुलस गए सड़कों पर
अपनी बौछारें रखना तन पर।

सूने कंधे, सूनी गोद,
भर दो इनके जीवन में प्रमोद।
उन्हें पुराने दिन लौटा दो,
अच्छे दिन ठीक नहीं है।
इनसे कोई सुखी नहीं है।

हे! बादल, उनकी पुकार सुनना,
ताल, तलैया और उपवन,
खेत, क्यारी हर अंगना,
मेरा भी उनको संदेशा कहना।

यह आपदा का समय,
वक्त का फैसला है।
कुछ गुनाहों की सजा है।
आपत्ति किसी एक पर नहीं,
देश-विदेश मानवता पर है।

ध्यान रखना आदमी ही,
आदमी के काम आता है।
बीत गई सदियां....
कोई दैवीय शक्ति नहीं आई,
बस मानव ने मानव की जान बचाई।

भूख! प्रथम सत्य है,
इससे बड़ा रोग नहीं है।
पता करो पड़ोस में,
कोई भूखा तो नहीं है।
मानव का यही धर्म है,
अन्यथा मनुष्य भी पशु है।

लोभ- लाभ को छोड़कर,
भावनाओं से जुड़ना।
तय करो मानव बन कर,
तुम द्रोपदी के पक्ष में हो,
कि दुशासन के पक्ष में।
कोई बेसहारा तो नहीं है,
आपत्ति का मारा तो नहीं है।

विज्ञान को भी बता देना,
जो शांत सोया हुआ है।
यहां सबने कुछ खोया हुआ है।
प्रकृति से हस्तक्षेप,
महंगा पड़ेगा....
शराब ने अभी हाथ धुलवाया,
जागो जन जागो, जागो.....
अभी ना जागे तो,
शराब से नहाना पड़ेगा।

(मौलिक एवं स्वरचित)
कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610 1035 89

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