रविवार, अगस्त 02, 2020

*रिश्तों का बंधन राखी* : मनोज कुमार चंद्रवंशी

*रिश्तों का बंधन राखी*

अटूट  पावन   रिश्तों   का   पर्व  राखी,
अनुराग, समर्पण   का  अनुपम  बंधन।
रक्षा सूत्र से कलाइयाँ  पावन   होती  हैं,
मस्तक  शुभग  शुचि   कुमकुम  चंदन॥

दृढ़  प्रतिज्ञा  हो  निज  हृदय  पटल  में,
सहोदरा   विकट  काल में रक्षा  हो।
प्रेम समर्पण हो नित  प्रगाढ़ संबंधों में,
सुहागिन  बहन की  प्राणों  से  रक्षा हो॥

पुनीत  सनेह  सुमन  प्रस्फुटित   हुआ।
भगिनी  की  निर्मल  हृदय  आँगन  में,
नेह गंध से सुवासित  हृदय का  कोना,
तन,मन प्रमुदित स्नेह के अवलंबन में॥

भ्रातृत्व भाव सदा बना रहे  जीवन में,
सहोदरा दैव यही  कामना करती है।
भाई अडिग रहे  सदा विकट घड़ी  में,
भाई के दीर्घायु  का   विनय  करती है॥

अनुजा के लिए रक्षा अमूल्य उपहार,
सदा  स्वर्णिम  चिर स्वप्न  सजाती है।
खुशहाल   हो   मेरे   भाई   प्रतिपल,
भगिनी का नित यही भाव सुहाता  है॥

हे!  भगिनी  शपथ है  मातृभूमि   की,
मैं  तन्मयता  से  कर्तव्य  निभाऊँगा।
समरसता, सद्भाव सदा  रहे  हृदय में,
वतन  के  रक्षार्थ बलि-बलि जाऊँगा॥

त्याग,  समर्पण   संकट की   घड़ी  में,
प्रेम,करूणा,सौहार्द हृदय सेअर्पित है।
निजता  का  भाव मिटा कर हृदय  से,
तन, मन, वतन  के  लिए  समर्पित है॥

विपदाओं में  कर्तव्य  पथ  में  अटल,
पावन रिश्तों को दृढ़ता से निभाना है।
भगिनी,  माँ   भारती  के  सम्मान  में,
पावन रक्षा सूत्र का मूल्य  चुकाना है॥
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                   रचना✍
        स्वरचित एवं मौलिक
        मनोज कुमार चंद्रवंशी
     जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
नोट- मैं घोषणा करता हूँ कि मेरा यह रचना अप्रकाशित एवं अप्रसारित सर्वाधिकार सुरक्षित है।

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