अविनाश सिंह: *हाइकु:-गुरु को समर्पित*
**************************************
गुरु सम्मान
मिले स्वर्ग में स्थान
बनो महान।
जिसकी डाँट
लगती आशीर्वाद
कहते गुरु।
गुरु महिमा
दे कोयले से सोना
करो सम्मान।
राह दिखाए
अंधकार मिटाए
मान बढ़ाए।
रंक से राजा
अंधेरे से प्रकाश
गुरु बनाते।
लेना है कुछ
गुरु के आगे झुको
विन्रम बनो।
गुरु का हाथ
होता कलम समान
लिखे भविष्य।
गुरु की मार
खींचे जीवन रेखा
होता प्रसाद।
ज्ञान का बीज
कीचड़ में कमल
उगाये गुरु।
मिट्टी से घड़ा
दूधिया से भविष्य
लिख दे गुरु।
भाग्य विधाता
अंधकार मिटाता
मेरा उस्ताद।
गुरु की शिक्षा
सबसे बड़ी दीक्षा
बांध लो मुट्ठी।
मैंने जो पाया
गुरु मार्ग दिखाया
सुख ही सुख।
माँ और पिता
आरंभिक शिक्षक
अंतिम गुरु।
हुआ मैं बड़ा
पर आज भी झुकूँ
गुरु तो गुरु।
हे! गुरू (वर्ण पिरामिड विधा)
हे!
गुरु
आप हैं
भगवान
मार्गदर्शक
जीवन रक्षक
हमारे संरक्षक।
रचना :
अविनाश सिंह
गोरखपुर
8010017450
**************************************
गुरु सम्मान
मिले स्वर्ग में स्थान
बनो महान।
जिसकी डाँट
लगती आशीर्वाद
कहते गुरु।
गुरु महिमा
दे कोयले से सोना
करो सम्मान।
राह दिखाए
अंधकार मिटाए
मान बढ़ाए।
रंक से राजा
अंधेरे से प्रकाश
गुरु बनाते।
लेना है कुछ
गुरु के आगे झुको
विन्रम बनो।
गुरु का हाथ
होता कलम समान
लिखे भविष्य।
गुरु की मार
खींचे जीवन रेखा
होता प्रसाद।
ज्ञान का बीज
कीचड़ में कमल
उगाये गुरु।
मिट्टी से घड़ा
दूधिया से भविष्य
लिख दे गुरु।
भाग्य विधाता
अंधकार मिटाता
मेरा उस्ताद।
गुरु की शिक्षा
सबसे बड़ी दीक्षा
बांध लो मुट्ठी।
मैंने जो पाया
गुरु मार्ग दिखाया
सुख ही सुख।
माँ और पिता
आरंभिक शिक्षक
अंतिम गुरु।
हुआ मैं बड़ा
पर आज भी झुकूँ
गुरु तो गुरु।
हे! गुरू (वर्ण पिरामिड विधा)
हे!
गुरु
आप हैं
भगवान
मार्गदर्शक
जीवन रक्षक
हमारे संरक्षक।
रचना :
अविनाश सिंह
गोरखपुर
8010017450
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.