शनिवार, जून 13, 2020

भूमि पुत्र (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

"भूमि पुत्र"

भोर  काल  में  उठकर,
धरा   की   आराधना   करता   है।
सिर  में    मुरेठा   बाँधें,
वसुधा की सेवा में तटस्थ रहता है॥

धरती की रज कण को,
माथे    में    तिलक   लगाता   है।
धन - धान्य से परिपूर्ण कर,
जग  में   भूमिसुत   कहलाता है॥

बारिश के स्वर्णिम बूंदों से,
बदन   वसन    अति    गीला  है।
शरीर कंपित दाँत किटकिटाते,
कृषक   हृदय   साहस  शिला है॥

चाहे जेष्ठ  की ऊमस  हो,
या  कड़कड़ाती  पूष  की  रात।
आंधी   या  तूफान   चले,
या  सावन   की   हो   बरसात॥

भारतीय परिधान में शोभित,
सुन्दर  कटि कछौटा लटकाता है।
खेत में  मित्र बैलों  के साथ,
श्रम  करने  से  नहीं  घबराता  है॥

जीवन     को    तपाकर,
धरती   में   उत्पादन    करता  है।
जग का भरण - पोषण कर,
धरा  में   श्रम  देवा  कहलाता है॥

सादगी जीवन जीता है,
भारतीय संस्कृति को अपनाकर।
धरा के सुरभित करता है,
भारतीयता का पहचान बताकर॥


                    रचना
        मनोज कुमार चंद्रवंशी
  बेलगवाँ जिला अनूपपुर (म0प्र0)

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