मंगलवार, जून 16, 2020

बारिश की पहली बूंद (कविता): मनोज कुमार

'बारिश की पहली बूंद'

बारिश   की   पहली   बूंद  से,
हरित   वर्ण   वृक्षों   की  डार।
निशा    की    सघन    जुल्फें,
अवनि   की   पुलक  अपार॥

पावस     की     बौछार    से,
दादुर   की   टर्र  -  टर्र  तान।
पादप       जगत     मदहोश,
मानो  पावस  रितु की शान॥

तीक्ष्ण   बयार  की   धूम  से,
सक्रिय   हो   रहा   मानसून।
अलसाये  तरुलताप्रसून,
बारिश  से  हृदय  में  सुकून॥
                                       
मेघ  गर्जन की मधुर थाप से,
शीतल   मंद,   चले  पुरवाई।
झुरमुट द्रुम सुर ताल मिलाते,
विटप पात की बजे शहनाई॥

सरिता,सर मारे किलकारियाँ,
अवनी  में  गुंजित  चहुँ  ओर।
सुमधुर    अति     मनभावन,
समंदर  तीक्ष्ण  करे  हिलोर॥

रसाल, जाम के  सरस फल,
सुमधुर,     सुहृद      रसीले।
बारिश  की स्वर्णिम बूंदों से,
कड़क  मृदा  हो  गए  ढीले॥

उपवन में  कुसुम प्रस्फुटित,
विविध सुमन बिखेर  सुगंध।
सुरचाप  दृष्टिपात  गगन  में,
हर्ष समाविष्ट  निज अतरंग॥

पावस  ऋतु  में  उदित  रवि,
पल-पल अदृश्य हो जाता है।
रिमझिम फुहारों की वर्षा को,

संध्या  रानी को दे  जाता है॥

               स्वरचित✍
        मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर(म0प्र0)
रचना दिनाँक - १४|०६|२०२०

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