शनिवार, जून 20, 2020

जीवन है अनमोल: अजीत पटेल "सोनू"

जीवन है अनमोल 
मैं एक प्राइवेट फाइनेंस कम्पनी में काम करता हूँ। मेरा काम है लोगों को जरूरत के समय ऋण देना और समय पर वसूली करना। यही आज से 10 वर्ष से कर रहा हूँ।। सुबह 7 बजे आफिस, फिर लोन अप्रेजल, लोन डिसवर्ष, ऋण वसूली। शुरू- शुरू में मुझे बहुत अच्छा लगता था, और लगे भी क्यो न मुझे दिन भर बाहर घूमना, तरह-तरह से लोगों से मिलना, उनसे बातें करना कालेज टाइम से ही पसंद था, लेकिन समय के साथ-साथ यह सब बोरिंग लगने लगा। कहीं लगता यह जॉब छोड़ दूँ, कहीं लगता कुछ नया शुरू करूं। यही सब सोचते-सोचते अब बहुत वक्त हो गया। अब ऐसे हालात में था कि कुछ नया करने का साहस ही नहीं बचा। अब इस उम्र में नया रिस्क नहीं ले सकता था। सब ऐसे ही चल रहा था घर से आफिस, फिर फील्ड, ऋण वसूली।

एक दिन हेड आफिस से फोन आया कि आप अपना टारगेट पूरा करिए या तो घर जाइए। हम ऐसे कामचोर ऑफिसर को नहीं रख सकते। मेरे मन में बहुत ज्यादा खीझ हुई। मुझे ऐसे कैसे बोल सकते हैं? मैंने इस कम्पनी के लिए क्या-क्या नहीं किया? सुबह के 07 बजे से रात के 11 बजे तक लगा रहा। जब से यहाँ नौकरी की, तब से कभी भी 10.30 से पहले घर नहीं गया, डेली कलेक्शन, सेम डे रजिस्टर, बैंक रजिस्टर, लोन एप्रूवल, कैश मैच और आने वाले दिन का प्लान इन सब के बिना तो कभी छुट्टी हुई ही नहीं। साथ में हप्ते के पूरे सात दिन, कभी तिथि- त्यौहार में घर नहीं गया, एडवांस कलेक्शन के बाद ही जाना है नहीं तो नहीं जाना है। और ऐसा भी नहीं है कि मेरा टारगेट हर बार छूटा है, लेकिन इस महीने तबियत कुछ ज्यादा ख़राब रही तो नहीं कर पाया तो क्या कोई ऐसे बात करेगा? आज तक जो किया क्या वो कुछ नहीं ? ऐसे ही सवाल दिमाग में घूम रहा था। मैंने अपना काम ख़त्म किया और घर की ओर चल दिया पर अचानक आज मेरी गाड़ी अहाता की ओर चल पड़ी। जबकि मैं आज तक कभी नहीं गया। ऐसा नहीं था कि इसके पहले मैं कभी पिया नहीं लेकिन सिर्फ कभी-कभी, जब दोस्तों ने जबरदस्ती की। पर आज दिमाग में बहुत उथल पुथल चल रहा था। मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। मुझे मर जाना ही ज्यादा आसान लग रहा था। उसी अहाता के कोने में बैठे हुए मुझे 2 घण्टे हो गये। मुझे खुद पता नहीं चला कब 12 बज गये। जैसे-तैसे मैं रात के 01 बजे घर पहुंचा। दिमाग में बार-बार मरने का ख्याल आ रहा था। एक बार तो मैंने गले में फंदा भी लगाया, लेकिन नहीं कर पाया। दिल बहुत जोर से धड़कने लगा। सामने टीवी में कोई मूवी चल रही थी। मैं वहीं बैठ गया और देखते देखते सो गया। सुबह जब नींद खुली तो 10 बज चुके थे। आज पहली बार मुझे इतना लेट हुआ। मोबाइल देखा तो 50 मिस काल। मैंने अपने सुपरवाइजर को बताया आज नहीं आ पाऊंगा। मेरी तबियत ठीक नहीं है, फिर मैं उठा और कुछ नास्ता और चाय बनाया फिर मेरा ख्याल कल के बारे में सोचने लगा। तभी उस मूवी के कुछ सीन याद आये जो मुझे दिलचस्प लगे। मैंने बाजार से उस सीडी कैसेट को लाया। उस मूवी का नाम था छिछोरे। मैंने एक बार बैठ कर वह मूवी खत्म की, उसके बाद यह सोचा मैं कितना बेबकूफ हूं जो यह ज़िन्दगी खत्म कर रहा था। वहीं से मुझे ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली और फिर मैं अगले दिन सुबह 7 बजे तैयार होकर आफिस गया। वहां सभी से मिला सबसे बातें की उसके बाद मैंने अपने सुपरवाइजर को अपना इस्तीफा दे दिया। उसके बाद घर आया और अपना खुद का कूरियर कम्पनी शुरू किया। शुरू में बहूत ज्यादा परेशानी हुई लेकिन आज के समय मेरे 5 फ्रंचाईजी हैं और अब मैं बहुत खुश हूं। एक पोइंट  मैं  मरना चाहता था लेकिन अब मैं कम से कम 20 लोगों को रोजगार देता हूँ।

मोरल - जब भी हम कभी बहुत ज्यादा है हताश हो जाते हैं। उस वक्त कोई भी गलत क़दम न उठाए। वो भी वक्त है, निकल जाएगा। लेकिन ज़िन्दगी बहुत अनमोल है। हमारी एक ज़िन्दगी से न जाने कितनी जिन्दगियां जुड़ी हुई है, इसलिए जब भी आपको लगता है कि अब सब कुछ खत्म है, उस वक्त आप मूवी देखें, पुस्तकें पढ़ें, करीबी लोगों से बात करें लेकिन कोई भी गलत कार्य न करें।
(स्वरचित)
अजीत पटेल" सोनू"
सचिव- जन कल्याण युवक मंडल झांपर

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