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वन बिन जीवन है बेकार।
वन ही जीवन
मरण है वन ही, वन
ही प्राणाधार।
वन बिन कुछ
भी नहीं है प्यारे, जीवन का
पतवार।।
वन ही घर
है वन ही फल है, वर्षा का
आधार।
वन के ही
बल श्वास चलत हैं, वन मुक्ति
का द्वार।।
वन संरक्षण, भू संरक्षण, जल संरक्षण सार।
पर्यावरण
प्रदूषण न कर, न कर
अत्याचार।।
कहैं सहोदर
वन उत्सव में शपथ करो दो चार।
पेड़ लगाना, वृक्ष बचाना कर धरती से प्यार।।
....2...
मानव स्वारथ से
लिपटानी।
स्वारथ में ही लीन रहत है परमारथ न जानी।स्वारथ पैर कुल्हाड़ी निज पर मार करे नादानी।।
उपयुक्त सलाह जो देना चाहे करता आनाकानी।
समझाने पर देत सफाई न छोड़े मनमानी
।।
आपन दोष पराए मढ़कर, बोले चिकनी बानी।
रखे सहोदर भाव न तरु से फिर पीछे पछतानी।।
रचनाकार:-
राम सहोदर पटेल
स. शिक्षक, शा. हाईस्कूल नगनौड़ी
निवास ग्राम-सनौसी, तहसील-जयसिंहनगर, जिला-शहडोल मध्यप्रदेश
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