*मनचले मित्र*
जगन राम और मगन
राम नाम के दोनों मित्र थे। दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम था। प्रायः दोनों साथ ही आना-जाना करते थे। एक दूसरे
के काम में हमेशा सहयोग करते थे। दोनों ही मंदबुद्धि थे। किसी भी बात को आसानी से
नहीं समझ पाते थे। दोनों ही मोटे दिमाग के थे।
एक दिन दोनों
मित्र जगन राम और मगन राम सैर करने के इरादे से सड़क पर बातें करते हुए जा रहे थे
जगन राम बोला- मित्र, मगन सड़क पर बाईं ओर चलना चाहिए। मगन राम- बोला हां मित्र, और सड़क पार करते समय
दोनों ओर पहले देख ले फिर पार करें। इस
प्रकार दोनों आगे बढ़ रहे थे कि सड़क के किनारे एक बोर्ड लगा मिला जिसमें लिखा था “सावधानी
हटी, दुर्घटना घटी।“ बोर्ड में यह लिखा हुआ देख दोनों रुक गए और बोर्ड में लिखे
हुए सुरक्षा वाक्य को पढ़कर दोनों प्रसन्नता से हंसते हुए आपस में उस सदवाक्य का
अर्थ करने लगे। जगन बोला-मित्र, अब हमें आगे
चलने पर दुर्घटना का कोई खतरा नहीं। बोर्ड
में लिखा हुआ वाक्य हमें बताता है कि सावधानी हट गई यानी अब हमें सावधान रहने की
आवश्यकता नहीं है अब दुर्घटना घट गई है इधर दुर्घटना कम गई है। इसलिए अब आगे बेफिक्र होकर चलना चाहिए। दोनों मनचले परिवहन के नियमों को ध्यान दिए बिना
आगे की ओर चल पड़े। जगन राम बोला- मित्र, मगन कुछ दिल बहलाने वाली शायरी सुनाओ
जिससे मन मस्त हो जाए और चलने में थकान भी ना लगे। मगन राम बोला-ठीक है, सुनो।
तोर निकरे तोर
दादा मरिगा,
अउर भइया का दुख
होइगा ।
बीच गली मा नारी
हेराइगा,
तोरे दाई के कीन्ह आए या ।
इतना सुनते ही
जगन राम की आंखें लाल हो गई और गुस्से में आकर वह बोला- बेशर्म तुम मेरे दाई को ही
गाली देने लगा। यह कहकर जगन राम दौड़ पड़ा मगन राम को मारने के लिए। तब मगन राम ने उसे समझाया कि यह तेरे लिए नहीं
बल्कि मैं तो राम और उनकी माता कैकेई के बारे में एक कविता सुनाया हूं। तब जगन राम कविता का अर्थ समझा और शांत होकर
दूसरा पंक्ति सुनाने को कहा। मगन राम ने
दूसरा पंक्ति सुनाया
तोर नसाए घर फरिका जलगै,
अऊ होइगै परवारा
नाश ।
तोर मेहेरिया राड
होइगै,
भइबा का मिलगै खास ।
इस कविता का अर्थ
जगन राम पूछा कि इसका भी तू अर्थ बता। कहीं मेरे बारे में तो नहीं कहा। तब मगन राम ने अर्थ बताया कि रावण ने सीता को
चुरा कर लंका का सर्वनाश कर दिया और भाई विभीषण को खास लाभ मिला। मगन राम बोला
मित्र जगन राम, अब तुम सुनाओ एक आध। जगन
राम बोला-सुनो।
तै पैदा भए धरती
से,
और तोर संगी
बहुतेरे ।
तोर दादा घूटरूमल
भये,
तोर दाई दांत काढे
रे ।
अब इस पहेली को
सुनकर मगन राम क्रोधित हो गया और जगन राम को मारने दौड़ा। मगन यह सोचकर कि यह बदला चुका रहा है। आग बबूला था और यदि जगन भागता नहीं तो मगन को
मार भी पड़ जाती। मगन राम के क्रोध को देख
जगन राम ने समझाया कि यह तो कपास की खेती की मैं पहेली सुनाया हूं। कपास पैदा होकर गुटूर गुटूर फल देता है और पककर जब फूटता है तब दूर से दांत सा निकला दिखता है। इस प्रकार अर्थ समझ कर मगन राम खुश होकर कहा-अच्छा
दूसरा सुनाओ। जगन राम बोला-
पहिलेन ते तै रहे
मूर्ख,
और रहिगा साथ जो तोरे ।
भौजी का अपने चीरहरण कीन्हें,
सब मामा बिगाडिस तोरे ।
इस पहेली का अर्थ
मगन राम के समझ में आ गया। इस प्रकार
ठिठोली कर मस्ती में झूमते-हंसते मचलते बेफिक्र चले चल रहे थे। इतने में ही पीछे
से पुलिस की गाड़ी आई और इन दोनों को गलत रास्ते पर चलते देख वह गाड़ी रुकी तथा
दोनों को दो-दो बेंत लगाकर उसी गाड़ी में बिठाया और पुलिस चौकी पहुंचा दिया जहां
दरोगा ने दोनों को नजर कैद कर दिया और कुछ समय बाद छोड़ दिया।
इस कहानी से यही
सीख मिलती है कि किसी शब्दावली का गलत अर्थ लगाने पर गलत परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
नियम का उल्लंघन करने पर दंड भुगतना पड़ता है। मौज मस्ती खूब करो किन्तु नियम और शिष्टाचार का पालन करना अत्यावश्यक है।
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रचनाकार:
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