पापा की हैं प्यारी,
घर की लक्ष्मी बेटियां।सब लोगो की राजदुलारी,प्यारी - प्यारी बेटियां।कोई पड़ा तकलीफ में,तब आगे आएं बेटियां।कई ऐसे ये पल दिखाएं,और बहुत रुलाएं बेटियां।पूरा घर हो भरा - भरा सा,जब घर में होती बेटियां।रूप अनेक हैं इनके,मां, बहन, पत्नी ये सब होती बेटियां।इनसे है संसार बना,इनके बिन न कोई बना।कभी भी इनपर हुआ अन्याय,त्राहि - त्राहि संसार किया।निडर साहसी होती नारी,अन्याय कभी न सहती हैं।अगर समय आए लड़ने का,वीरांगना रूप दिखती हैं।समय - समय की बात है,जब बेटी बंधी - बंधी सी।अब जब समय मिला बढ़ने का,तब बेटी उड़ी-उड़ी सी।मंगल पे पहुंची हैं बेटी,चांद पे भी पहुंची हैं बेटी।जहां-जहां भी नजर जाएगा,सभी जगह अब दिखेंगी बेटी।रचना- पंकज कुमार (ET प्रथम वर्ष)ग्राम- बैहार पोस्ट- गौरेला थाना- जैतहरी जिला- अनूपपुर (म प्र)
▼
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.