शुक्रवार, मई 15, 2020

पापा की हैं प्यारी:पंकज कुमार

पापा की हैं प्यारी,
घर की लक्ष्मी बेटियां।
सब लोगो की राजदुलारी,
प्यारी - प्यारी बेटियां।

कोई पड़ा तकलीफ में,
तब आगे आएं बेटियां।
कई ऐसे ये पल दिखाएं,
और बहुत रुलाएं बेटियां।

पूरा घर हो भरा - भरा सा,
जब घर में होती बेटियां।
रूप अनेक हैं इनके,
मां, बहन, पत्नी ये सब होती बेटियां।

इनसे है संसार बना,
इनके बिन न कोई बना।
कभी भी इनपर हुआ अन्याय,
त्राहि - त्राहि संसार किया।

निडर साहसी होती नारी,
अन्याय कभी न सहती हैं।
अगर समय आए लड़ने का,
वीरांगना रूप दिखती हैं।

समय - समय की बात है,
जब बेटी बंधी - बंधी सी।
अब जब समय मिला बढ़ने का,
तब बेटी उड़ी-उड़ी सी।

मंगल पे पहुंची हैं बेटी,
चांद पे भी पहुंची हैं बेटी।
जहां-जहां भी नजर जाएगा,
सभी जगह अब दिखेंगी बेटी।

रचना- पंकज कुमार (ET प्रथम वर्ष)
ग्राम- बैहार पोस्ट- गौरेला थाना- जैतहरी जिला- अनूपपुर (म प्र) 

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