गुरुवार, अप्रैल 23, 2020

किताबें महज़ किताबें नहीं होतीं:अमलेश कुमार

किताबें महज़ किताबें नहीं होतीं
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किताबें महज़ किताबें नहीं होतीं
ये गुज़रे वक़्त की तस्वीर होती हैं
बेजुबां होकर भी बोलती हैं
ये दुनियाभर के रहस्य खोलती हैं

किताबें हमसे बात करती हैं
कहानियां और गीत सुनाती हैं
किताबें अहसास बनकर
हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती हैं 

किताबें सफ़र में हमसफ़र होती हैं
कभी घर तो कभी छप्पर होती हैं
किताबों को ओढ़ता, बिछाता हूँ
मैं कभी किताबों संग सो जाता हूँ

हमारे संग हँसती हैं रोती हैं
किताबें अच्छी मित्र होती हैं
हमारे जीवन का सार हैं
किताबें ख़ुद एक संसार हैं

किताबें दरिया हैं समंदर हैं
ये हमारे बाहर हैं हमारे अंदर हैं
किताबें दरख़्त हैं परिंदे हैं
ये हर गाँव हर शहर के वासिंदे हैं

ख़ुसरो की पहेली कबीर की साखी हैं
अँधों का चश्मा,लंगड़ों की बैसाखी हैं
गिरते को सम्हलना सिखाती हैं
किताबें हमेशा सही राह दिखाती हैं ।

✍अमलेश कुमार (२३/०४/२०२०)

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