मानवता का पथ
मानवता के पथ पर हम निशदिन बढ़ते जाएंगे,संकट की घड़ी में हम नहीं शीश झुकाएंगे।
विचलित ना हों राह से कंटक चाहे जितने आएं,
अविचल चलते रहना है विपदा से ना घबराएं।
अनवरत चलकर संकीर्ण राह में मानवता का बीज बोना है ,
निष्ठुरता, निर्ममता को त्यागकर कलंक का टीका धोना है ।
अनुपम तन पाकर स्वधर्म निभाना होगा,
क्षणभंगुर काया में निजता का भाव मिटाना होगा।
अद्वितीय मानवता धर्म जग में है न्यारा,
सहज,सुगम मानवता पथ सबसे है प्यारा।
दलित, दुःखी निर्बल जन का संताप मिटाना है,
अदमम्यता का परिचय देकर नई किरण दिखाना है।
नि:स्वार्थ की तालीम देकर समरसता का अलख जगाना है,
दया, धर्म, त्याग, तपस्या निज घट में अपनाना है।
सकल मजहब में मानवता धर्म हमारी सच्ची पूजा है,
इंसानियत के भाव से बढ़कर और नहीं कोई दूजा है।
काव्य रचना:मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक) संकुल-खाटी विकासखंड पुष्पराजगढ़, जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)
Bahut badhiya sir ji
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