कोरोना का वैश्विक कहर
कोरोना की वैश्विक कहर से तन-मन है अधीर,
इस वेदना से कैसे ?बचें चिंता बड़ी गंभीर l
जीवन करण क्रंदन हो रहा दुख का साया छाया है,
हाहाकार मचा है जग में विपदा का घड़ी आया है ll
अभावग्रस्त की जिंदगी मानव कभी नहीं झेला है,
नैसर्गिक प्रतिकार यही मानव प्रकृति से खेला है l
प्राकृतिक शक्ति या मानव शक्ति कौन?इसे जाने,
इस प्रकोप से बचना है तो रक्षित उपायों को माने ll
मजदूरों की दुर्दशा बढ़ गई जिंदगी बन गई नर्क,
उद्योगपति मन चिंतित है अब तनिक पड़ा उन्हें फर्क l
महंगाई छू गई नभ को सामान सुलभ नहीं हो पाता,
आवागमन अवरुद्ध हो गए कोई बाहर नहीं जा पाता ll
सकल घरेलू बहु घट गई चरमरा गई अर्थव्यवस्था,
मानव काल कवलित हो रहा सर्वत्र है अव्यवस्था l
श्रम साधना व्यर्थ हो गई कोरोना के जंजालों से,
स्वदेश न लौट सके ना मिल सके नौनिहालों से ll
अब दम घुटने लगा है थम सी गई है स्वास,
जगत के इस प्रलय में कब? आए तन में आस l
हम सब के सहयोग से सुख का दिन आएगा,
जब विजयी होगा भारत विश्व गुरु कहलायेगा ll
कोरोना से स्वच्छ हुआ अवनि और अंबर तल,
अब प्रदूषण से मुक्त हुआ तनिक जल और थल l
मुक्त गगन में स्वच्छंद उड़ रहे हैं तुच्छ कीट पतंगा,
निर्मल हुआ यमुना का जल स्वच्छ हुआ पावन सी गंगा ll
कार्बन उत्सर्जन कम हुआ घटा धरा का तापमान,
वायु प्रदूषण न्यूनतम उज्जवल हुआ आसमान l
कानन तरु निर्भय खड़े ना दुख ना ना संताप,
हरा भरा जग सारा प्रकृति का यही प्रताप ll
कीटनाशक, खरपतवार नाशी आंशिक हुआ प्रयोग,
मरूभूमि उर्वर हुआ शुद्ध जैविक हो रहा उपयोग l
कुछ वक्त बिताने को मिला निज कुटुंब के साथ,
परिस्थिति हमें जीना सिखाया बढाअटल विश्वास ll
प्रभु को भूल चुके थे निज भौतिक वादी अरमान,
अब भोर काल में उठते ही हिय जपत हरि नाम l
पर्यावरण शुद्ध हुआ अनुपम मनोहरी दृश्य,
शुचि नीर शुद्ध समीर प्राकृतिक का यह परिदृश्य ll
स्वरचित कविता🖊️ मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक) संकुल खाटी विकासखंड पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.