आबा भइलो,
एक बात बताई।
वायरस वाली
बीमारी है आई।।
पहिले पहिल,
चीन के बुहान मांही फइला।
अब सगली दुनिया,
होइ गय एसे मटमइला।।
सांस केर है
भयानक यह बीमारी।
एकाएक चपेट माहीं,
आ गय दुनिया सारी।।
दिसम्बर माहीं शुरुआत भईं,
महीना बीता है कुल चार।
देखत-देखत रूप विकराल,
समूची दुनिया में भई विस्तार।।
लड़े हयन खूब लड़ाई,
एखे खातिर अउर करी तयारी।
सरकारी निर्देशन का मानी,
हराई कोरोना जउन है हत्यारी।।
अउर लड़ाई लड़े रह्यन,
युद्ध मैदान माहीं जा जाके।
य लड़ाई अलग तरह से है,
घर रही रूखा-सूखा खा के।।
कईसन जीतब, कईसन लड़ब,
है आज केर यहै चुनौती।
सब कोऊ आपन घर रही,
पुलिस का न करैं पड़ै मनौती।।
संक्रामक है यह बीमारी,
एक-दूसर माहीं तेजी से फइलै।
बीच-बीच माहीं करी धुलाई,
हाथ माहीं साबुन लै-लै।।
साबुन-पानी का हथियार बनाई,
अउर मुंह मास्क का ढाल।
खुल्लम-खुल्ला न खांसी-छींकी,
विजय होई तबहिन हर हाल।।
घर माहीं रही, रही घर माहीं,
है एक इहै उपाय।
जे न मानी इन बातन का,
फेर न पइहैं कोहू का कहूँ लुकाय।।
बहुतै मजबूरी जो होय जाना,
सावधानी अधिक से अधिक अपनाई।
हाथ सकेल रही बलभर,
बिन धुले हाथ चेहरा कबहूं न छुआई।।
सामान जो जउनौ लायन,
ओखर खूब करी धुलाई।
जो धूल न सकी तो
धूप माहीं देई बगराई।।
तनिक समय तक छांड़ि दिहेन,
वायरस न रह जाय।
कहैं विशेषज्ञ अधिक ताप पर,
मानव शरीर से बाहर मरि जाँय।।
अउर देखी, लोगन से लोगन बीच,
एक से डेढ़ मीटर का राखा दूरी।
सब्जी-भाजी, लोन-तेल लेत माहीं,
न संघरी, क्यातनौ होय मजबूरी।।
शहरन माहीं पुलिस लगी है,
गामन माहीं खुद करा तयारी।
गांव भरेन का समझावा,
जैसे ओऊ जीत सकैं महामारी।।
हैजा, हुलकी, प्लेग, तपेदिक
चेचक का तो सुने रह्या।
उनकर बाप बन है आवा,
य छूत के बीमारी से बचे रह्या।।
छुअत-छुअत य फइलत है,
एक से दुई, अउ दुई से चार।
का सेतै आय डरी हैं,
दुनिया भर की सरकार।।
चीन माहीं त्राहिमाम मचाके,
पहुंच चुका अमेरिका, इटली, भारत, जापान।
यह दुश्मन बहुत बड़ा है,
न समझब त या दुनिया होइ जइ शमसान।।
गांव-गमइन के लोग समझिगे,
पर न समझें बच्चे-नादान।
उनहूँ का समझाई,
लिए गेंद हाथ में न पहुँचैं मैदान।।
दूर-दूर रहिके काम चलाई,
वस्तु जो आपन देई।
जो पड़ै बहुत जरूरत,
पहिले रगड़-रगड़ के धोई।।
या खैनी खाय-खाय के,
मारि रह्या जउन पिचकारी।
वायरस फइली तमाम जगह,
तबहिन होई महामारी।।
अउर बइठ इकट्ठा पांच जने,
चिलम केर कश खींच रह्या हा।
निकहा से समझ ल्या सयाने,
बीमारी केर बिरवा सींच रह्या हा।।
एकै ताश के गड्डी,
जउन बारी-बारी से फेंटत्या हा।
धर अपने गदिया मांहीं यमदूत,
आपन जिंदगी अपने हाथ मेटत्या हा।।
जो टोरा सब्जी, भाजी, तरकारी
पहिले अच्छे से साबुन से हाथ का धोबा।
नोट लेत-देत माहीं गिनती खातिर,
थूंक न आपन चिपकाबा।।
वायुयान रुकिगा,
रेल, बस, जलयान रुकिगा।
फैक्टरियां बन्द हुईं,
सरकार केर सब काम रुकिगा।।
एही से बीमारी का समझी,
या हुलकी जइसन महामारी आय।
सावधानी बरतें बचब शान से,
नहीं तो मौत केर सवारी आय।।
अंधियार मिटै, उजियारा होय,
सबके हांथे बची या संसार।
उपाय मान चलिहैं तबहिन,
देखिहा खुद का और आपन मित्र-यार।।
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.