मनई केर मानवता बिन है अस्तित्व नहीं।
दिखावा के चोला पहिने से छुपै सत्य नहीं।
दुख-दर्द, दया, प्रेम आय मानवता के आधार,
ईर्ष्या, लोभ, क्रोध है मानवता के तत्व नही।
मानवता मरिगै, मनई,मनईन का काट रहा है।
करके गलती खुद दुसरै का खूब डाँट रहा है।
हर दिन ढूंढ रहा है, रिशतन मा एक अपनापन,
पै सबके रहत आपन दर्द खुद से बाँट रहा है।
बाप-महतारिन के सगा लड़िका रहा नहीं।
जइसन सोचे रहन वइसन दुनिया रही नहीं।
अपने-अपने का सही सिद्ध करै मांहीं लगा है,
धार के सीधा-सीधा बहत नदिया रही नहीं।
मानवता धुंधला होइगा, आधुनिकता के दौर मां।
दानवता ऊंजला होइगा आधुनिकता के दौर मां।
मशीनन से काम आदि अइसन होइस मनई का,
मनई पुतला होइगा आधुनिकता के दौर मां।
-कुलदीप पटेल
अति सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
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