दहेज लोभियो ले लो दहेज कोई बात नहीं।
पर जान लो तुम्हारी कोई औकात नहीं।।
खेतों या घर का सामान गिरवी रख कर यह पैसा आया होगा।
या किसी पूंजीपति के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाया होगा।।
तब कहीं दहेज देने की सामग्री जुटा पाया होगा।
एक बेटी का पिता होने का कितना कष्ट उठाया होगा।।
फिर भी तुम्हारे लालची मन को संतुष्ट न कर पाया होगा।
तुम्हारे परिवार के लोगों ने कितना ठुकराया होगा।।
क्या किसी की बेटी थी यह पर्याप्त नहीं ?
या तुम्हारे फरमाइशों को था कुछ प्राप्त नहीं ?
दहेज के पैसों का धौंस दिखाओगे.....
क्या इससे तुम अपनी शान बढ़ा पाओगे ?
न जाने ये दहेज कितनी बेटियों को खा गई।
एक पिता को बेटी जन्म देने का दुःख जता गई।।
क्यों करते हो अपना मोलभाव, क्यों घटाते हो अपना ही प्रभाव ?
क्या तनिक भी शर्म नहीं है, दहेज समाज में उचित नहीं है।
लेन-देन का भाव मन से निकाल कर।
बिना दहेज वाली शादी की शुरुआत कर।।
दहेज वाली नहीं साक्षात् लक्ष्मी को स्वीकार करो।
बिना दहेज वाली शादियों से, समाज को अवगत करो।।
प्रस्तुति -धर्मेंद्र कुमार पटेल (डी.के.) नौगवां
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बहुत अच्छा लिखते हैं धर्मेंद्र जी। कंटेंट एवं शैली दोनों बेमिशाल हैं।
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