गुरुवार, अगस्त 29, 2019

मैं सडक हूँ:मैं खराब सडक हूँ (व्यंग्य)







मैं सड़क हूँ. मैं खराब सड़क हूँ. मेरी महानता मानिए कि लोगों को उनके घरों तक पहुँचाती हूँ. जरा सोचिए, अगर मैं चलती होती तो क्या होता? आप किसी रोज अपने घर नहीं पहुँचते. मैं उस ओर चली जाती जिधर आपका मकान है ही नहीं. अच्छा यदि मैं चलती होती तो आपको ढूंढना भी मुश्किल हो जाता. आप जब तक सही सड़क पर आते, लोग ढूढने किन्हीं और सड़कों पर पहुँच जाते. 

यदि मेरा स्वास्थ्य अच्छा होता तो मैं कम काम की होती. अगर मैं अच्छी होती, एक अदना-सा कर्मचारी जब विलम्ब से कार्यालय आता तो वह क्या बहाना बनाता? मैं आलसी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए जन स्वास्थ्य रक्षक दवाओं की तरह उनका बचाव करती हूँ मतलब असर न करे तो न करे मगर बहानों को पूरी तरह बेअसर भी नहीं होने देती. मेरी खराबी से व्यापार भी खूब फलता-फूलता है. यदि मैं चुनाव के पूर्व खराब हो जाऊं तो इसका लाभ विपक्षी पार्टी उठाती है और यदि मैं चुनाव के बाद खराब हो जाऊं तो सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाती हूँ. मेरी खराबी को विपक्ष गला फाड़-फाड़कर बताता है और वोट बटोरता है और यदि मैं चुनाव के बाद ख़राब दिखूं तो सत्ताधारी दल मेरी खराबी दूर कराने के बहाने जनता से वायदा निभा पाता है. अच्छा, आप मुझे अच्छा कर भी दो तो मैं सगी किसी की नहीं होती हूँ, जो सत्ताधारी दल मुझे अच्छा बनाता है उसके चुनाव आने का भी मैं इन्तजार नहीं करती. मैं टूट जाती हूँ. चुनाव विश्लेषक मेरी बात मानें तो किसी चुनाव में हार -जीत का सर्वे कराने से पहले मेरा सर्वे करा लें तो उन्हें पक्का मालूम पड जायेगा कि कौनसी पार्टी हारने वाली हैं. मैं सिर्फ अपने ठेकेदार की वफादार होती हूँ, वह जब एक बार मुझे बनाना प्रारंभ करता है मैं तब तक बनती रहती हूँ जब तक कि मेरे ठेकेदार का मेंटिनेंस पीरियड समाप्त नहीं हो जाता. जैसे ही उसका मेंटिनेंस पीरियड समाप्त होता है मैं खुद ब खुद दूसरे ही दिन ख़तम हो जाती हूँ और ठेकेदार को मेरा पुनर्जन्म कराने का अगला ठेका मिल जाता है. 

मेरा मन करता है कि मैं दौडूँ पर मैं दौड़ नहीं सकती. हाँ, रेल की पटरियों को देखकर जरूर मुझे चिढ होती है. वह दौड़ सकती हैं. जरूरी नहीं है कि रेल की पटरियों पर गाड़ियाँ ही दौड़ें. गाड़ियों को खुद पर सवार कर पटरियां भी दौड़ सकती हैं. यदि मैं जमीन से बिलकुल चिपकी न होती तो मैं खुद ही दौड़ती और लोगों के इस कहावत को सही सिद्ध करती जो लोग यह पूछते हैं कि यह सडक कहाँ तक जायेगी? अब जब मैं जाती ही नहीं तो लोग क्या बताएं कि मैं कहाँ तक जाती हूँ. पर रेल की पटरियां जा सकती हैं. वह मेरी तरह जमीन से लिपटी नहीं हैं. और यदि रेल की पटरियों को भरोसा नहीं होता कि पटरियां दौड़ सकती हैं तो उन्हें किसी पुराने राजनीतिज्ञ से मिलना चाहिए. उन्होंने या तो पटरियां दौडाई हैं या दौडाते हुए देखा है. नेता लोग खर्चे की पटरी पर विकास के डिब्बों को दौडाने की बात कहते हैं पर अक्सर होता उल्टा है विकास प्लेटफॉर्म छोड़ता ही नहीं बस खर्चे की पटरियां दौड़ती रहती हैं. 

मैं सड़क हूँ. मेरे खराब होने के और भी फायदे हैं. लोग वैसे तो यातायात के नियमों का पालन नहीं करते परन्तु मेरी खराब स्थिति उन्हें यातायात का पालन करवाने के लिए मजबूर कर देती है. ऐसा करके मैं फिर एक बार सरकार का सहयोग करती हूँ. यदि मैं अच्छी होती हूँ तो ऐसा लगता है लोगों को सिर्फ एक दिन की ही जिन्दगी मिली है सब सरपट दौड़ें जाते हैं लेकिन जब मैं खराब होती हूँ लोग आराम से जाते-आते हैं जैसे उन्हें दो जिंदगियां मिल गई हैं. 

आजकल लोग तालाब भी तो नहीं बनवा रहे हैं. माता-पिता मुझमें बने गड्ढों को दिखाकर अपने बच्चों को तालाब की शक्ल तो बता ही सकते हैं. आजकल लोग एक-दूसरे से मिलना तो क्या निहारना भी पसंद नहीं करते परन्तु मेरी ख़राब स्थिति दुश्मनों को भी मिलवा देती है. आप कल्पना कीजिए आपके किसी दुश्मन की गाड़ी गड्ढे में फँस जाए और आप सामने खड़े हों आप उन्हें मदद करेंगे या नहीं? हमारी संस्कृति दुश्मनों की भी मदद करना सिखाती है. आप चाइना को ही देख लीजिए, भारत-चाइना युद्ध के बाद और जब-तब आँखें तरेरने के बावजूद भारत चाइना के व्यापार को बढाने में मदद कर ही रहा है न! मैं सडक हूँ मेरा गड्ढा तो जब तब भर भी जायेगा लेकिन राजनीति के सडक में जो गड्ढे हैं वो कब भरेंगे, इसकी मुझे चिंता है. 

मेरा खराब रहना सभी की सेहत के लिए अच्छा है. कितने ही पतियों के ऑफिस से देर से लौटने का कारण मैं बन जाती हूँ. टैक्सीवालों के मनमौजी टैक्सी चलाने और ऊपर से मनमाना किराया वसूलने का भी बहाना बनती हूँ. वह कहता है-देखते नहीं, भाई साहब सडक कितनी खराब है. इस पर टैक्सी कैसे दौड़ाऊँ? और जब पैसे वसूलने होते हैं तब- देखते नहीं भाईसाहब! सडक कितनी खराब है. इस सड़क में इतना डीजल बरता है कि पूछो मत. मेरे खराब होने से ही फूटपाथ में सोने वालों की जान बची हुयी है नहीं तो न जाने कितनों के ऊपर रोज गाड़ियाँ चढ़ती रहतीं! फिर सब लोग हिरन की तरह किस्मत वाले थोड़े हैं कि गाड़ी ऊपर चढ़ जाने का न्याय कराते फिरते! 

मैंने खूब देखा और पाया कि मैं जितना अच्छा रहकर लोगों की मदद कर सकती हूँ उससे कहीं अधिक खराब रहकर मदद कर सकती हूँ. और इसीलिये मेरी कोशिश होती है कि मैं ज्यादातर खराब ही रहूँ. अब जब कहीं मैं आपको खराब स्थिति में दिख जाऊं तो प्लीज आप मेरी सरकार को दोष मत दीजिएगा मैं लोक कल्याण के लिए ही खराब बनी पडी हूँ. अधिकाँश जगह मैं इसी स्थिति में आपको दिखूंगी. मैं सडक हूँ. मैं खराब सड़क हूँ. 
प्रस्तुति एवं रचना: सुरेन्द्र कुमार पटेल
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8 टिप्‍पणियां:

  1. सड़क के माध्यम से समाज और राजनीति में जो करारा व्यंग्य किया है वह काफी प्रभावक है। आज ऐसे ही व्यंग्य रचनाओं की आवश्यकता है जिससे राजनीति में नए सड़क बने और अपने टिकाऊपन के साथ सदा जीवित रहे।

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  2. बहुत बढ़िया लिखा है आपने एक article birthday wishes for sister पर भी लिखें

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  3. बहुत अच्छा लिखा है आपने कोई नई post लिखे Nice information great post whatsapp status

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने सराहनीय पोस्ट Best article satta matkaji

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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