सोमवार, अगस्त 26, 2019

कैसा हमने हिन्दुस्तान बना डाला:दो तुकबन्दियाँ


(1) कैसा हमने हिन्दुस्तान बना डाला

सौंपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे  
उसको हमने भगवान बना डाला
क्या सपना देखा था शहीदों ने
औ कैसा हमने हिन्दुस्तान बना डाला

जिनको सेवक समझा संविधान ने
उन्होंने कैसा-कैसा हाल किया
टूटी पुलिया, सड़कें टूटी
शिक्षा औ स्वास्थ्य को भी बदहाल किया

प्रजातंत्र का बस  नाम रहा
और तिजोरी अपना भर डाला         
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

भारत के भीतर कितने भारत
सत्तर सालों में यह भेद मिटा न पाए
चकाचौंध रोशनियों से छिपा शहर का सड़ांध
गाँव-गाँव रहा, उसकी तस्वीर हटा न पाए

जिसे मिला उत्तरदायित्व निभाने का अवसर
उसने अवसर का खूब लाभ उठा डाला      
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

छिप गयी गरीबी और बेरोजगारी
इनका मुखौटा बहुत बिकाऊ है
राशन सड़ता खुले आसमान में
इनका भाषण नहीं टिकाऊ है

सेवक बन चुनाव जीतते, पर
सेवक पद को ही राजतन्त्र बना डाला          
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

हाथ जोड औ पैर पकड कर
ए मत याचक बन चुनाव जीतें जो
विकास एजेंडा पीछे रखते
पूरे पांच साल निज काम से न रीते वो

स्वयं किया बदनाम तंत्र को औ
समूचे तंत्र का निजीकरण कर डाला           
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

पक्ष और विपक्ष में भेद नहीं
बस अपनी-अपनी बारी है
खुली योजनाएं, खुली लूट
खजाना तो सरकारी है
पथभ्रष्टों को रोकना कहकर
भ्रष्टता की नित नई राह बना डाला              
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे


हम मुद्दों में उलझे इतना कि
गरीब का निवाला मुद्दा नहीं रहा,
अमीर हो गया जो कागजी आंकड़ों में
वो अगले दिन राशन लेने जिन्दा नहीं रहा
मह्त्वहीन मत याचक को दे महत्व
हमने ही फूलों से लादा और डाली माला            
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

कौन ख़ाक करे अब खुद को
कौन भरे जन-जन में चिंगारी
मौन रहो और मौज करो
सबमें ऐसी फ़ैली है बीमारी
हमने सत्ता सौंपी और सुस्त हुए
इस आजादी का हमने क्या कर डाला               
...सौपनी थी व्यवस्था मात्र जिसे

                 (2)ऐसा देश बनाएँ हम

आओ-आओ, आओ-आओ ऐसा देश बनाएँ हम
आओ-आओ, आओ-आओ ऐसा परिवेश बनाएं हम
शिक्षा का अलख जगे औ सम सम्मान पाएं सब
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का हो विकास औ प्रगति पथ पर बढ़ते जाएं हम
आओ-आओ, आओ-आओ...

खेती को अछूत न मानेंनई तकनीक अपनाएं सब 
घर में चाहिए और आय तो बाजार को भी अपनाएं सब
पुरानी रूढ़ियाँ हो विकासकंटक  तो इनको बिसराएँ हम
बेटा-बेटी का भेद न करतेसोचें की पढ़ जाएं सब
आओ-आओआओ-आओ...

रहें प्रफुल्लित सब जन मन ऐसा माहौल बनाएं सब
त्याग कलुष मन कासदविचार का संस्कार अपनाएं सब 
मिले स्नेह छोट्जनों को और बड़ों को सेवाभाव देवें 
रोगी हो या हो वृद्ध सभीजनों को अपनाएँ हम 
आओ-आओआओ-आओ...

नशापान से नहीं भलाईइनको जल्दी ही बिसराएँ सब
गुटखा,जर्दापानसुपाड़ी इनको खाकर न इतरायें हम
मतिभ्रम का कारण बनते इनको शौक बनाएं न हम
स्वच्छ मन औ स्वच्छ तन से स्वच्छ समाज बनाएं हम 
आओ-आओआओ-आओ...

आलस करना नहीं है अच्छा स्फूर्तिभाव को अपनाएँ सब
खाली समय न होता बढ़िया, कुछ कामकाज ही अपनाएँ हम
इस धरा का कर वायु और जलपान बढ़ पाए सब 
रहे आबाद सदा जनजीवन से धरती ऐसा कुछ कर जाएं हम
आओ-आओआओ-आओ...


प्रस्तुति एवं रचना : सुरेन्द्र कुमार पटेल

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