हमारे शरीर से जुड़ी
अनेक रोचक बातों में एक आदत निर्माण की प्रक्रिया भी है. प्रायः हम यह कहते सुनते
हैं कि क्या करें, यह हमारी आदत हो गई है. हम ऐसा कहना तो नहीं चाहते परन्तु हमारी
आदत है. यह भी कहते सुने होंगे कि तम्बाकू हम नहीं खाना चाहते परन्तु क्या करें
हमारी आदत हो गई है. कुछ की खाने संबंधी आदतें हैं, कुछ की बोलने सम्बन्धी आदतें
हैं, कुछ की हर किसी की बात को टोकने की आदतें
हैं, कुछ की ज्यादा सोने की आदत है. कुछ की टीवी देखने की आदत है, कुछ की व्यर्थ
की बातें करने की आदत है. सच तो यह है कि एक आदमी और दूसरे आदमी में जो अंतर है वह
उसकी आदतों का ही अंतर है. और आदमी कुछ नहीं बल्कि बहुत सारी आदतों का समुच्चय है.
जहाँ तक हमारी आदतें हमारे जीवन के लिए लाभप्रद और औरों के लिए अनुकरणीय हैं, वहां
तक आदत समस्या नहीं है. परन्तु जिन आदतों से स्वयं का और अन्यों की हानि हो रही हो
या किसी प्रकार की समस्या हो रही हो उन आदतों से हर कोई पीछा छुडाना चाहेगा. पर
कैसे?
समस्याग्रस्त आदतों
की समस्या सिर्फ यही नहीं है कि वह हमारी आदत है. समस्या यह है कि हम अपनी आदतों
से दूसरों की आदतों का निर्माण करते हैं. हम जिन दूसरों की बात कर रहे हैं वह
कोई दूसरे नहीं बल्कि वह हमारे ही अपने सगे संबंधी होते हैं हमारे पुत्र-पुत्रियाँ
और हमारे ही भाई-बहन..
उन लोगों के लिए इस
बात की चर्चा का कोई महत्व नहीं है जो आदतों को बहाने के ढाल के रूप में इस्तेमाल
करना चाहते हैं. शेष जो वाकई आदतों से ही
मजबूर हैं, उनके लिए आदत निर्माण प्रक्रिया की बात करना सार्थक हो सकता है. उन्हीं
को ध्यान में रखकर बात को आगे बढाते हैं.
हमारा मष्तिष्क कभी
किसी बात को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक कि उसे स्वीकार करने का समुचित तर्क
नहीं दिया जाए. यदि खाने के एक पैकेट को आपके सामने रखा जाय और कहा जाय लीजिये खाइए- तो आपका पहला प्रश्न होगा
यह क्या है? यह प्रश्न तभी होगा जब आपके
सामने रखा गया पैकेट आपके लिए अपिरिचित हो. उसी पैकेट को यदि आपको कभी पुनः दिया
जाए तो आपका मष्तिष्क पहली की घटना से सन्दर्भ प्राप्त कर परीक्षण कर लेगा कि यह
वही पैकेट है जो पहले आपने उपयोग किया है. केवल यही नहीं आपका मष्तिष्क इस पैकेट
की सामग्री के उपयोग के प्रभाव का भी मिलान कर लेगा और इसलिए यदि इससे बहुत अधिक
नुकसान नहीं हुआ हो तो इस पैकेट के बारे में ज्यादा चिंतन नहीं करेगा और पहले की
अपेक्षा कम समय में इसे स्वीकार कर लेगा.
अभी हमने मष्तिष्क
की बात की है. जब आप लगातार किसी एक
गतिविधि को करते-रहते हैं तो हमारा
मष्तिष्क उस गतिविधि के बारे में निर्णय
का अधिकार खो देता है. तब जिन शारीरिक अंगों के माध्यम से वह गतिविधि होती है वह
शारीरिक अंग स्वतः ही मष्तिष्क का अनुमति प्राप्त किये बिना उस गतिविधि में शामिल हो जाते हैं. इसे शरीर का
ऑटो मोशन में जाना कह सकते हैं. अब सब कुछ आटोमेटिक होता है. किसी गतिविधि का इस
हद तक पहुँच जाना बहुत खतरनाक होता है. अब आप चेतनाशून्य हो चुके हैं. आप मृतप्राय
हैं. आपके मष्तिष्क को लकवा मार गया है. आपके अंगों का सम्बन्ध मष्तिष्क से नहीं
रह गया है. अब आप आदत के गुलाम हो गये हैं.
इस प्रकार आदत व्यक्ति
की वह अवस्था होती है जब उसके मष्तिष्क का पूर्ण नियंत्रण शरीर पर नहीं रहता.
वास्तव में, मष्तिष्क न तो मृत होता है, और न ही उसका शरीर के अंगों से नियंत्रण
समाप्त होता है परन्तु मष्तिष्क उस सन्देश पर काम कर रहा होता है, जिस सन्देश के
साथ आपने उस गतिविधि को प्रारम्भ किया था.
पहली बार जब आपने तम्बाकू का सेवन किया था, तब आपने तम्बाकू खाने के पीछे कोई कारण
मान लिया था. मष्तिष्क ने आपके उस कारण को हमेशा के लिए लॉक कर लिया. अब वह मान
गया कि आपको तम्बाकू क्यों खाना चाहिए, इसलिए उसने प्रश्न करना बंद कर दिया. अब आप
तम्बाकू खा रहे हैं. क्यों? पता नहीं. अब आप ऑटोमैटिक तम्बाकू खा रहे हैं. आप
तम्बाकू खाने के गुलाम हो गये हैं.
कुछ बच्चों की देर
तक सोने की आदत होती है. वह इसलिए कि जल्दी उठने की जरूरत उनके मष्तिष्क तक प्रभावी तरीके से कभी पहुँची ही नहीं. प्रारम्भ
में बच्चों को अधिक सोने की जरूरत होती है. लेकिन यदि उसे जागने का महत्व कभी
समझाया नहीं गया तो बाद में भी, जबकि अब उसकी सोने की जरूरत कम हो गई है, वह अधिक
और देर तक सोता है... मष्तिष्क को पूर्व में मिला सन्देश कि देर तक और अधिक सोना
फायदेमंद है, उसे जगाने की चेष्टा ही नहीं करता. नींद अपना काम कर रही है. आदमी आटोमेटिक
सिस्टम में है.
जिन गतिविधियों से
आदतों का निर्माण होता है पहले उसका भान मस्तिष्क को होता है, फिर उन गतिविधियों
के आधार पर हमारे शरीर के चयापचय और मांशपेशियों में कुछ ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं
जो उन गतिविधियों को शरीर की जरूरर बना देते हैं. यह सब प्रकृति के नियम के अनुसार
ही है. प्रत्येक जीव के शरीर में परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करने का गुण पाया
जाता है इस बदलाव को ही अनुकूलन कहते हैं.शरीर को अनुकूलन की अवस्था में लाने के
लिए ही वह गुण या गतिविधि जो आप अपनाते हैं आपके शरीर की आदत बनती है. परन्तु इन
आदतों से जब व्यक्ति का नुकसान होना प्रारम्भ होता है, तब उसे इस बात का एहसास
होता है कि उसने जिस गैर जरूरत को जरूरत बना लिया वह तो पहले से ही शरीर के लिए
आवश्यक नहीं था. और वहाँ से व्यक्ति आदतों से छुटकारा पाने की पहल करना प्रारम्भ
करता है.
ख़राब आदतों का
निर्माण यत्न पूर्वक ही हुआ था. किसी पहली घटना से इसकी शुरुआत हुई थी. लगातार
पुनरावृत्ति के कारण यह आदत बनी. खराब आदतों का त्याग और अच्छी आदतों का निर्माण
भी इसी प्रक्रिया का पालन करने से होगा. पहले शुरुआत करनी होगी, फिर इसकी
पुनरावृत्ति करनी होगी. ख़राब आदतों का त्याग कठिन इसलिए होता है कि इसकी शुरुआत
जिस धूम-धाम और जज्बात के साथ होती है, वैसा इसे छोड़ने में मष्तिष्क अनुभव नहीं
करता. किसी खराब आदत को छोड़ने में हमेशा ही द्वंद होता है. आधा विचार छोड़ने का होता
है और आधा विचार नहीं छोंड़ने का. किसी खराब आदत को छोड़ने के पीछे मष्तिष्क को प्रभावी
सन्देश नहीं दिए जाते. यदि आप किसी आदत को छोड़ना चाहते हैं तो इस आदत के पड़ने से
अधिक मजबूत कारण छोड़ने के देने होंगे. अन्यथा एक दिन छोंड़ेंगे और अगले दिन फिर वही आदत पकड
लेंगे.
पढना, और अधिक लगन
से पढना भी आदत का हिस्सा है. यह आदत व्यक्तिगत भी है और सामूहिक भी. बिहार और
उत्तरप्रदेश के बच्चों में अधिक परिश्रम से पढने की चर्चाएँ मशहूर हैं. उनके
मष्तिष्क को प्रारम्भ से ही पढने की जरूरत का सन्देश प्रभावी तरीके से पहुंचा दी
जाती है. उनके आसपास ऐसे परिश्रमी छात्रों का समूह होता है, जो लगन और परिश्रम से
पढ़ते हैं. उनके सभी के पढने की सामूहिक आदत से व्यक्तिगत आदत का निर्माण होता है
और यही व्यक्तिगत आदत सामूहिक आदत निर्माण में सहयोगी होता है. आपके आसपास पढाई का
माहौल न होना, आपके बच्चे को हतोत्साहित करेगा. क्योंकि बच्चे को पढने के लिए जिस
सामूहिक आदत से पढने की व्यक्तिगत आदत का निर्माण करना था उसका अभाव है. ऐसे में
बहुत हद तक यह संभव है कि आपका बच्चा उन आदतों को सीख ले जो उस माहौल में सामूहिक
आदतों के रूप में विद्यमान है.
इन आदतों के बड़े
स्वरुप से उस क्षेत्र विशेष की पहचान बनती है. आप देखते हैं हर शहर-कसबाई लोगों की
एक खास पहचान होती है. कुछ सार्व गुण होते हैं जो उस क्षेत्र के सभी या अधिकांश
लोगों में पाए जाते हैं. इनमें से बहुत से गुण अच्छे नहीं होते और वह उस क्षेत्र
के लोगों के कुख्यात होने के कारण बनते हैं. ...
आपकी कोई भी आदत हो,
जिसे आप वाकई छोड़ना चाहते हैं. कठिन नहीं है. आपको सजग रहना पडेगा बस. जब भी आप उसी आदत की तरफ बढ़ रहे हों, स्वयम
को एक बड़ा कारण दें, उसे आप क्यों छोड़ना चाहते हैं? निश्चित रूप से जिस भी आदत को
आप छोड़ना चाहते हैं, कोई बड़ा कारण होगा. नहीं तो बड़ा कारण बनाइए. आपको तम्बाकू
छोड़ना चाहिए क्योंकि इससे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होती है और लोगों की जान जाती
है. .. . आपके नहीं जाएगी, किन्तु तम्बाकू खाने की आपकी यह आदत औरों के आदत का
निर्माण करेगी और वह कैंसर का शिकार हो जायेगा. वह और कोई नहीं आपका कोई अपना भी
हो सकता है. जब आपका मष्तिष्क किसी आदत के प्रारंभ में ही आपसे प्रश्न करे तभी आप
रुकें और गलत आदत का निर्माण हो, ऐसी शुरुआत ही न करें.
(विशेष आग्रह ......कृपया इस लेख पर एक बार फिर पधारें, इसका शेषांश भी है)
(विशेष आग्रह ......कृपया इस लेख पर एक बार फिर पधारें, इसका शेषांश भी है)
प्रस्तुति-सुरेन्द्र कुमार पटेल
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बढ़िया है सर। आपकी तर्कयुक्त बातें जरूर ही लोगो को अपने हानिकारक आदतों को छोड़ने में मदद करेंगी।
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